Matsaya PuranDiamond Pocket Books (P) Ltd. - 152 pages |
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अग्नि अनेक अपना अपनी अपने आदि आप इंद्र इन इस इस प्रकार इसके उत्पन्न उनके उनसे उन्हें उन्होंने उस उसका उसके उसने उसे एक एवं ओर और कर दिया करके करता करते हुए करना करने के करें का किया और किसी की कुछ के कारण के पास के बाद के रूप में के लिए को कोई गई चाहिए जन्म जब जाने जो तक तथा तप तब तुम तो था थे दंड दान दानव दानवों दिन देखकर देवता देवताओं देवों दैत्य दो द्वारा धर्म धारण नहीं नाम ने पर पार्वती पुत्र पुराण पृथ्वी प्रसन्न प्राप्त फिर बहुत बात बोले ब्रह्मा ब्रह्माजी भगवान नारायण भी मत्स्य मुझे मैं ययाति यह यहां युद्ध रहे राजा लगा लगे लिया लेकिन वह वहां वाला वाले विष्णु वे शंकर शर्मिष्ठा शिव शिवजी शुक्राचार्य श्री सभी समय समान सुनकर सूर्य सृष्टि से ही हुआ हुई हूं हे है है और हैं हो गए हो गया होकर होने