Brahmavaivart Purana (ब्रह्मवैवर्त पुराण)

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Diamond Pocket Books (P) Ltd., 2022 M09 21 - 162 pages

भारतीय जीवन-धारा में जिन ग्रंथों का महत्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। पुराण-साहित्य भारतीय जीवन और साहित्य की अक्षुण्ण निधि हैं। इनमें मानव जीवन के उत्कर्ष और अपकर्ष की अनेक गाथाएं मिलती हैं। कर्मकांड से ज्ञान की ओर आते हुए भारतीय मानस चिंतन के बाद भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हुई। विकास की इसी प्रक्रिया में बहुदेववाद और निर्गुण ब्रह्म की स्वरूपात्मक व्याख्या से धीरे-धीरे भारतीय मानस अवतारवाद या सगुण भक्ति की ओर प्रेरित हुआ। अठारह पुराणों में अलग-अलग देवी देवताओं को केन्द्र मान कर पाप और पुण्य, धर्म और अधर्म, कर्म और अकर्म की गाथाएं कही गई हैं। आज के निरन्तर द्वन्द्व के युग में पुराणों का पठन मनुष्य को उस द्वन्द्व से मुक्ति दिलाने में एक निश्चित दिशा दे सकता है और मानवता के मूल्यों की स्थापना में एक सफल प्रयास सिद्ध हो सकता है। इसी उद्देश्य को सामने रख कर पाठकों की रूचि के अनुसार सरल, सहज भाषा में पुराण साहित्य की शृंखला में यह पुस्तक प्रस्तुत है।

 

Contents

ब्रह्म खण्ड
13
प्रकृति खण्ड
45
गणेश खण्ड
72
कृष्ण जन्म खण्ड
98
कालिया नाग की कथा
123
गौरी व्रत की कथा
137
Copyright

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Common terms and phrases

अंश अपनी अपने आदि आप इन्द्र इस इस प्रकार इसके इसी उत्पन्न उनकी उनके उन्होंने उस उसके उसे एक ऐसा और कर करके करता है करते हुए करने कहा कि का काम कि हे किया और की कृष्ण ने के कारण के लिए के समान के साथ को गंगा गई गणेश गया गुरु जन्म जब जाता है जाने जो तक तथा तब तुम तुम्हारे तो था थी थे दिया दुर्गा देवी द्वारा धर्म नन्द नहीं नाम नारद नारायण ने कहा पति पत्नी पर परशुराम पार्वती पुत्र पुराण पूजा पृथ्वी प्रकृति प्रसन्न प्राप्त फिर बताया कि बाद बार बालक ब्रह्मा ब्रह्मा ने ब्राह्मण भक्ति भगवान् भी मन मुझे मुनि में मेरे मैं यह यहां राजा राधा रूप में लिया वह वहां वाली वाले विष्णु वे वेद शंकर शाप शिव श्रीकृष्ण सब सभी समय से स्तुति स्वयं ही हुआ हुई हुए हूं है है और हैं हो गये होकर होता है होने

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